सरकारी भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक और नकल करने पर आरोपियों को अधिकतम 10 साल की जेल और 1 करोड़ रुपए जुर्माना देना पड़ेगा। केंद्र सरकार ने मंगलवार (6 फरवरी) को इन पर रोक लगाने के लिए पब्लिक एग्जामिनेशन (अनुचित साधनों की रोकथाम) बिल पास कर दिया। अब इसे राज्यसभा में भेजा जाएगा।
यह बिल कानून बनता है तो पुलिस को बिना किसी वारंट के संदिग्धों को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा। आरोपी को जमानत नहीं मिलेगी और इन अपराधों को समझौते से नहीं सुलझाया जा सकेगा। हालांकि प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले उन बच्चों को टारगेट नहीं किया जाएगा, जो जानबूझकर इसमें शामिल नहीं होते हैं।
अनुचित साधन-
प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी की अनधिकृत पहुंच या लीक बिना अधिकार क्षेत्र के प्रश्न पत्र या OMR शीट तक पहुंचना या उसे कब्जे में लेना OMR शीट या उत्तर पुस्तिकाओं के साथ छेड़छाड़
विधेयक की धारा 3 में अनेक कार्यों को अनुचित साधनों के रूप में माना गया है।
इन कार्यों में प्रमुख हैं-
• सार्वजनिक परीक्षा के दौरान उम्मीदवार की सहायता करना
• सार्वजनिक परीक्षा के दौरान किसी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा एक या अधिक प्रश्नों को हल करना
• शॉर्टलिस्टिंग के लिए दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़
• कंप्यूटर नेटवर्क या संसाधनों के साथ छेड़छाड़
• मौद्रिक लाभ के लिए नकली परीक्षा ⁸ करना
• नकली प्रवेश पत्र जारी करना
• धोखाधड़ी या मौद्रिक लाभ के लिए ऑफर लेटर जारी करना
• समय से पहले परीक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारी का खुलासा करना
• व्यवधान पैदा करने के लिए अनधिकृत लोगों का परीक्षा केंद्रों में प्रवेश करना
• इन 15 गड़बड़ियों को माना जाएगा अपराध
• सरकारी एजेंसी द्वारा तय परीक्षा के मानकों का उल्लंघन करना।
• किसी परीक्षा का क्वेश्चन पेपर या आंसर की लीक करना।
• क्वेश्चन पेपर या आंसर की लीक करने में किसी के साथ शामिल होना।
• बिना अनुमति क्वेश्चन पेपर या OMR शीट अपने पास रखना।
• परीक्षा के दौरान किसी से जवाब लिखने के लिए मदद लेना।
• परीक्षा दे रहे कैंडिडेट को डायरेक्ट या इंडायरेक्ट तरीके से मदद करना।
• एग्जाम आंसर शीट या OMR शीट के साथ छेड़छाड़ करना।
• कॉपियों के मूल्यांकन में बिना अनुमति छेड़छाड़ करना।
• मेरिट के लिए तय डॉक्यूमेंट्स में किसी तरह की छेड़छाड़ करना।
• पब्लिक एग्जाम के लिए तय सिक्योरिटी मानकों का उल्लंघन करना।
• किसी एग्जाम कम्प्यूटर सिस्टम या नेटवर्क में छेड़छाड़ करना।
• कैंडिडेट्स की सीट अरेंजमेंट, एग्जाम डेट या शिफ्ट में छेड़छाड़ करना।
• किसी एग्जामिनेशन अथॉरिटी को धमकाना या काम करने से रोकना।
• परीक्षा या एग्जाम अथॉरिटी से जुड़ी नकली वेबसाइट बनाना।
• नकली एडमिट कार्ड जारी करना या नकली एग्जाम कराना।
• 4 साल तक के लिए एग्जाम सेंटर होगा सस्पेंड
अगर किसी गड़बड़ी में एग्जाम सेंटर की भूमिका पाई जाती है तो उस सेंटर को 4 साल के लिए सस्पेंड किया जाएगा। यानी उस सेंटर को अगले 4 साल तक के लिए कोई भी सरकारी एग्जाम कराने का अधिकार नहीं होगा।
इसके अलावा परीक्षा में गड़बड़ी कराने में मिलीभगत पाए जाने पर सेंट्रल एजेंसी पर भी 1 करोड़ तक का जुर्माना लगेगा। बिल में जेल की सजा का भी प्रावधान है।
एग्जाम सेंटर में नहीं मिलेगी हर किसी को एंट्री
ये बिल ऑर्गेनाइज्ड गैंग्स, माफिया और इस तरह के कामों में लगे हुए लोगों से निपटने के लिए लाया गया है। इसके साथ ही अगर सरकारी अधिकारी भी इसमें शामिल पाए जाते हैं, तो उनको भी अपराधी माना जाएगा। किसी भी ऐसे व्यक्ति को जिसे पब्लिक एग्जाम या उससे जुड़ा काम नहीं दिया गया है उसे एग्जाम सेंटर में एंट्री नहीं दी जाएगी।
जारी होगा गैर जमानती वारंट
यह बिल कानून बनता है तो पुलिस को बिना किसी वारंट के संदिग्धों को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा। आरोपियों को जमानत नहीं मिलेगी और इन अपराधों को समझौते से नहीं सुलझाया जा सकेगा।
बिल में बताए गए किसी भी अपराध की जांच पुलिस उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त के पद से नीचे का अधिकारी नहीं करेगा। इस बिल में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), कर्मचारी चयन आयोग (SSC), रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB), बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (IBPS) और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं को शामिल किया गया है।
बिल के दायरे में ये केंद्रीय परीक्षाएं होंगी
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सज़ा का प्रावधान-
विधेयक की धारा 9 के अनुसार, सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानता आर गर-शमनयोग्य होंगे।
बिना वारंट के गिरफ्तारी की जा सकती है और जमानत पाना अधिकार का मामला नहीं होगा।
एक मजिस्ट्रेट यह निर्धारित करेगा कि अभियुक्त जमानत पर रिहा होने योग्य है या नहीं। एक गैर-शमनयोग्य अपराध वह है, जिसमें शिकायतकर्ता द्वारा मामला वापस नहीं लिया जा सकता है,
• भले ही शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया हो।
• अनुचित साधनों और अपराधों का सहारा लेने वाले किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के लिए सजा तीन से पांच साल की जेल और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
• दोषी व्यक्ति जुर्माना देने में विफल रहता है, तो धारा 10(1) के अनुसार, “भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के अनुसार कारावास की अतिरिक्त सजा दी जाएगी।"
धारा 10(2) एक सेवा प्रदाता को दंड देने से संबंधित है
सेवा प्रदाता द्वारा किए गए अपराध पर 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
ऐसे सेवा प्रदाता से जांच की आनुपातिक लागत भी वसूल की जाएगी।
उन्हें 4 साल तक सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने से भी रोक दिया जाएगा।
यह सत्यापित हो जाता है कि सेवा प्रदाताओं से जुड़े अपराध किसी निदेशक, वरिष्ठ प्रबंधन, या सेवा प्रदाताओं के प्रभारी व्यक्तियों की सहमति या मिलीभगत से किए गए थे,
• ऐसे व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
• इन्हें 3 साल से लेकर 10 साल तक की कैद और 1 करोड़ रुपये जुर्माने की सजा होगी।
"संगठित अपराध" के मामलों में कठोर सजा का प्रावधान है।
• "संगठित अपराध" को सार्वजनिक परीक्षा में गलत लाभ के लिए साजिश में शामिल व्यक्तियों के समूह द्वारा गैरकानूनी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया गया है।
• धारा 11(1) के अनुसार, संगठित अपराध के लिए सजा कम से कम 5 साल की कैद होगी, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
• जुर्माने की राशि 1 करोड़ रुपये से कम नहीं होगी।
• यदि किसी संस्था को संगठित अपराध करने का दोषी ठहराया जाता है,
• उसकी संपत्ति कुर्क और ज़ब्त कर ली जाएगी।
• परीक्षा की आनुपातिक लागत भी उससे वसूल की जाएगी।
पब्लिक एग्जामिनेशन बिल 2024 के प्रावधान
दोषी व्यक्ति को 3 से 5 साल की जेल और दस लाख तक का जुर्माना।
दोषी पर 1 करोड़ का जुर्माना और संपत्ति जब्त की जाएगी।
दूसरे परीक्षार्थी की जगह परीक्षा देने के दोषी को 3 से 5 साल की जेल, 10 लाख का जुर्माना।
दोषी संस्थान के डायरेक्टर, मैनेजमेंट या इंचार्ज के दोषी मिलने पर उनके लिए भी 3 से 10 साल की सजा, 1 करोड़ का जुर्माना।
संस्थान की मिली भगत साबित होने पर आरोपी संस्थान से परीक्षा का पूरा खर्च वसूला जाएगा। ऐसे संस्थान
अपराध में शामिल लोगों को 5 से 10 साल की सजा और 1 करोड़ तक का जुर्माना।
विधेयक की आवश्यकता क्यों -
• हाल के वर्षों में देश भर में भर्ती परीक्षाओं में प्रश्न पत्र लीक होने के मामले बहुत बढ़ गए हैं।
सार्वजनिक परीक्षाओं में कदाचार के कारण परीक्षाओं में देरी होती है और उनका रद्दीकरण होता है।
इससे लाखों युवाओं के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वर्तमान में अनुचित तरीकों या किए गए अपराधों से निपटने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
यह जरूरी है कि परीक्षा प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाने वाले तत्वों की पहचान की जाए।
एक केंद्रीय कानून द्वारा उनसे प्रभावी ढंग से निपटा जाए।
विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षा प्रणालियों में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाना है।
• युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदार प्रयासों का उचित प्रतिफल दिया जाएगा और उनका भविष्य सुरक्षित रखा जाएगा।
• इस विधेयक का उद्देश्य विभिन्न अनुचित तरीकों में लिप्त व्यक्तियों, संगठित समूहों या संस्थानों को प्रभावी ढंग से और कानूनी रूप से रोकना है।
• ये व्यक्ति, संगठित समूह या संस्थान मौद्रिक या गलत लाभ के लिए सार्वजनिक परीक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
• विधेयक में उम्मीदवारों के ऊपर कार्रवाई करने का प्रावधान नहीं है।
• उम्मीदवारों का मामला संबंधित सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण के मौजूदा प्रशासनिक प्रावधानों के तहत आएगा।
• यह विधेयक कानून बनने के बाद राज्यों के लिए एक मॉडल ड्रॉफ्ट के रूप में होगा, जिसे वे अपने विवेक से अपना सकते हैं।
• यह राज्यों को आपराधिक तत्वों को उनकी राज्य स्तरीय सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन में बाधा डालने से रोकने में सहायता करेगा।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "हाल के दिनों में, कई राज्यों को असामाजिक, आपराधिक तत्वों द्वारा अपनाई गई अनुचित प्रथाओं और साधनों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण अपनी सार्वजनिक परीक्षाओं के परिणाम रद्द करने पड़े या घोषित करने में असमर्थ रहे हैं। यदि इन अनुचित प्रथाओं को प्रभावी ढंग से अंकुश और रोक नहीं लगाई गई तो इस देश के लाखों महत्वाकांक्षी युवाओं के भविष्य और करियर को खतरे में डालना जारी रहेगा। कई मामलों में, यह देखा गया है कि उनमे संगठित समूह और माफिया तत्व शामिल हैं। वे सॉल्वर गिरोह, परीक्षार्थी के स्थान पर दूसरे व्यक्ति से परीक्षा दिलवाने (प्रतिरूपण- इम्पर्सोनाइ) जेशन जैसे तरीकों का उपयोग करते हैं और पेपर लीक करवाने में लिप्त होते हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक का उद्देश्य मुख्य रूप से इस तरह के जघन्य (नेफेरियस) तत्वों को रोकना है।"
उन्होंने कहा कि वर्तमान में व्यक्तियों, संगठित समूहों, या किसी अन्य एजेंसी/संगठन द्वारा अपनाए गए अनुचित तरीकों या किए गए अपराधों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई विशिष्ट ठोस कानून नहीं है यह स्थिति केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
उन्होंने कहा कि "इसलिए, यह आवश्यक है कि परीक्षा प्रणाली के भीतर और बाहर दोनों ही तरह के तत्व, जो इन कमजोरियों का फायदा उठाते हैं, की पहचान की जाए और उनसे एक व्यापक केंद्रीय कानून के माध्यम से प्रभावी ढंग से निपटा जाए। ऐसे आपराधिक तत्वों को इन परीक्षाओं में बैठने वाले वास्तविक और ईमानदार युवाओं के जीवन और आशाओं के साथ खेलने से रोकने की आवश्यकता है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, इसका उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षा प्रणालियों में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाने के साथ ही युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदार और वास्तविक प्रयासों को उचित पुरस्कार मिलेगा और उनका भविष्य सुरक्षित है।
उन्होंने कहा, "इस विधेयक का उद्देश्य उन व्यक्तियों, संगठित समूहों या संस्थानों को प्रभावी ढंग से और कानूनी रूप से रोकना है जो विभिन्न अनुचित तरीकों में लिप्त हैं और मौद्रिक या गलत लाभ के लिए सार्वजनिक परीक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।"
हालाँकि, डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि विधेयक परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों को दंडात्मक प्रावधानों से बचाता है और वे परीक्षा संचालन प्राधिकरण की मौजूदा अनुचित साधन नीति के प्रावधानों के अंतर्गत ही शासित होंगे।
उन्होंने कहा कि "उम्मीदवार विधेयक के दायरे में कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे और संबंधित सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण के मौजूदा प्रशासनिक प्रावधानों के अंतर्गत ही आते रहेंगे।"
केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा में बिल पेश करते हुए कहा- पब्लिक एग्जामिनेशन बिल में क्वेश्चन और आंसर सीट के लीक होने, डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से कैंडिडेट का सहयोग करने जैसे अपराध शामिल किए गए हैं।
उन्होंने कहा, 'अभी केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों के पास परीक्षाओं में पेपर लीक या नकल जैसे अपराधों से निपटने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है। इसलिए यह जरूरी है कि परीक्षा प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाने वालों की पहचान की जाए और उनसे सख्ती से निपटा जाए।'
इसके अलावा चीटिंग और गलत तरीके से पैसे कमाने के लिए फेक वेबसाइट बनाने, फर्जी एग्जाम्स कराने के लिए नकली एडमिट कार्ड या ऑफर लेटर जारी करने जैसे गैर-कानूनी काम को भी इस बिल में शामिल किया गया है।
इन राज्यों में पेपर लीक पर बने कानून
राजस्थान- पेपर लीक और नकल कराने वालों को उम्रकैद की सजा।
गुजरात- दोषियों को 3 से 10 साल तक की सजा और 1 लाख से 1 करोड़ तक का जुर्माना।
पेपर खरीदने वाले को भी 2 साल से 10 साल तक की सजा।
उत्तराखंड- गैर जमानती क्राइम, दोषी को 10 साल से उम्रकैद तक की सजा, 10 लाख से 10 करोड़ तक का जुर्माना।
हरियाणा- 7 से 10 साल जेल, 10 लाख तक का जुर्माना, दोषी की प्रॉपर्टी नीलाम करके नुकसान की भरपाई का प्रावधान।
पेपर लीक में कहां कितनी सजा?
राजस्थानः उम्रकैद (जल्द ही) उत्तराखंडः उम्रकैद
गुजरात: 10 साल जेल हरियाणाः 10 साल जेल उत्तर प्रदेशः दोषी पर लगता है NSA बिहारः IT एक्ट के साथ सख्त धाराओं में मुकदमा
यह बिल कानून बनता है तो पुलिस को बिना किसी वारंट के संदिग्धों को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा। आरोपी को जमानत नहीं मिलेगी और इन अपराधों को समझौते से नहीं सुलझाया जा सकेगा। हालांकि प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले उन बच्चों को टारगेट नहीं किया जाएगा, जो जानबूझकर इसमें शामिल नहीं होते हैं।
अनुचित साधन-
प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी की अनधिकृत पहुंच या लीक बिना अधिकार क्षेत्र के प्रश्न पत्र या OMR शीट तक पहुंचना या उसे कब्जे में लेना OMR शीट या उत्तर पुस्तिकाओं के साथ छेड़छाड़
विधेयक की धारा 3 में अनेक कार्यों को अनुचित साधनों के रूप में माना गया है।
इन कार्यों में प्रमुख हैं-
• सार्वजनिक परीक्षा के दौरान उम्मीदवार की सहायता करना
• सार्वजनिक परीक्षा के दौरान किसी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा एक या अधिक प्रश्नों को हल करना
• शॉर्टलिस्टिंग के लिए दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़
• कंप्यूटर नेटवर्क या संसाधनों के साथ छेड़छाड़
• मौद्रिक लाभ के लिए नकली परीक्षा ⁸ करना
• नकली प्रवेश पत्र जारी करना
• धोखाधड़ी या मौद्रिक लाभ के लिए ऑफर लेटर जारी करना
• समय से पहले परीक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारी का खुलासा करना
• व्यवधान पैदा करने के लिए अनधिकृत लोगों का परीक्षा केंद्रों में प्रवेश करना
• इन 15 गड़बड़ियों को माना जाएगा अपराध
• सरकारी एजेंसी द्वारा तय परीक्षा के मानकों का उल्लंघन करना।
• किसी परीक्षा का क्वेश्चन पेपर या आंसर की लीक करना।
• क्वेश्चन पेपर या आंसर की लीक करने में किसी के साथ शामिल होना।
• बिना अनुमति क्वेश्चन पेपर या OMR शीट अपने पास रखना।
• परीक्षा के दौरान किसी से जवाब लिखने के लिए मदद लेना।
• परीक्षा दे रहे कैंडिडेट को डायरेक्ट या इंडायरेक्ट तरीके से मदद करना।
• एग्जाम आंसर शीट या OMR शीट के साथ छेड़छाड़ करना।
• कॉपियों के मूल्यांकन में बिना अनुमति छेड़छाड़ करना।
• मेरिट के लिए तय डॉक्यूमेंट्स में किसी तरह की छेड़छाड़ करना।
• पब्लिक एग्जाम के लिए तय सिक्योरिटी मानकों का उल्लंघन करना।
• किसी एग्जाम कम्प्यूटर सिस्टम या नेटवर्क में छेड़छाड़ करना।
• कैंडिडेट्स की सीट अरेंजमेंट, एग्जाम डेट या शिफ्ट में छेड़छाड़ करना।
• किसी एग्जामिनेशन अथॉरिटी को धमकाना या काम करने से रोकना।
• परीक्षा या एग्जाम अथॉरिटी से जुड़ी नकली वेबसाइट बनाना।
• नकली एडमिट कार्ड जारी करना या नकली एग्जाम कराना।
• 4 साल तक के लिए एग्जाम सेंटर होगा सस्पेंड
अगर किसी गड़बड़ी में एग्जाम सेंटर की भूमिका पाई जाती है तो उस सेंटर को 4 साल के लिए सस्पेंड किया जाएगा। यानी उस सेंटर को अगले 4 साल तक के लिए कोई भी सरकारी एग्जाम कराने का अधिकार नहीं होगा।
इसके अलावा परीक्षा में गड़बड़ी कराने में मिलीभगत पाए जाने पर सेंट्रल एजेंसी पर भी 1 करोड़ तक का जुर्माना लगेगा। बिल में जेल की सजा का भी प्रावधान है।
एग्जाम सेंटर में नहीं मिलेगी हर किसी को एंट्री
ये बिल ऑर्गेनाइज्ड गैंग्स, माफिया और इस तरह के कामों में लगे हुए लोगों से निपटने के लिए लाया गया है। इसके साथ ही अगर सरकारी अधिकारी भी इसमें शामिल पाए जाते हैं, तो उनको भी अपराधी माना जाएगा। किसी भी ऐसे व्यक्ति को जिसे पब्लिक एग्जाम या उससे जुड़ा काम नहीं दिया गया है उसे एग्जाम सेंटर में एंट्री नहीं दी जाएगी।
जारी होगा गैर जमानती वारंट
यह बिल कानून बनता है तो पुलिस को बिना किसी वारंट के संदिग्धों को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा। आरोपियों को जमानत नहीं मिलेगी और इन अपराधों को समझौते से नहीं सुलझाया जा सकेगा।
बिल में बताए गए किसी भी अपराध की जांच पुलिस उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त के पद से नीचे का अधिकारी नहीं करेगा। इस बिल में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), कर्मचारी चयन आयोग (SSC), रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB), बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (IBPS) और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं को शामिल किया गया है।
बिल के दायरे में ये केंद्रीय परीक्षाएं होंगी
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सज़ा का प्रावधान-
विधेयक की धारा 9 के अनुसार, सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानता आर गर-शमनयोग्य होंगे।
बिना वारंट के गिरफ्तारी की जा सकती है और जमानत पाना अधिकार का मामला नहीं होगा।
एक मजिस्ट्रेट यह निर्धारित करेगा कि अभियुक्त जमानत पर रिहा होने योग्य है या नहीं। एक गैर-शमनयोग्य अपराध वह है, जिसमें शिकायतकर्ता द्वारा मामला वापस नहीं लिया जा सकता है,
• भले ही शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया हो।
• अनुचित साधनों और अपराधों का सहारा लेने वाले किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के लिए सजा तीन से पांच साल की जेल और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
• दोषी व्यक्ति जुर्माना देने में विफल रहता है, तो धारा 10(1) के अनुसार, “भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के अनुसार कारावास की अतिरिक्त सजा दी जाएगी।"
धारा 10(2) एक सेवा प्रदाता को दंड देने से संबंधित है
सेवा प्रदाता द्वारा किए गए अपराध पर 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
ऐसे सेवा प्रदाता से जांच की आनुपातिक लागत भी वसूल की जाएगी।
उन्हें 4 साल तक सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने से भी रोक दिया जाएगा।
यह सत्यापित हो जाता है कि सेवा प्रदाताओं से जुड़े अपराध किसी निदेशक, वरिष्ठ प्रबंधन, या सेवा प्रदाताओं के प्रभारी व्यक्तियों की सहमति या मिलीभगत से किए गए थे,
• ऐसे व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
• इन्हें 3 साल से लेकर 10 साल तक की कैद और 1 करोड़ रुपये जुर्माने की सजा होगी।
"संगठित अपराध" के मामलों में कठोर सजा का प्रावधान है।
• "संगठित अपराध" को सार्वजनिक परीक्षा में गलत लाभ के लिए साजिश में शामिल व्यक्तियों के समूह द्वारा गैरकानूनी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया गया है।
• धारा 11(1) के अनुसार, संगठित अपराध के लिए सजा कम से कम 5 साल की कैद होगी, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
• जुर्माने की राशि 1 करोड़ रुपये से कम नहीं होगी।
• यदि किसी संस्था को संगठित अपराध करने का दोषी ठहराया जाता है,
• उसकी संपत्ति कुर्क और ज़ब्त कर ली जाएगी।
• परीक्षा की आनुपातिक लागत भी उससे वसूल की जाएगी।
पब्लिक एग्जामिनेशन बिल 2024 के प्रावधान
दोषी व्यक्ति को 3 से 5 साल की जेल और दस लाख तक का जुर्माना।
दोषी पर 1 करोड़ का जुर्माना और संपत्ति जब्त की जाएगी।
दूसरे परीक्षार्थी की जगह परीक्षा देने के दोषी को 3 से 5 साल की जेल, 10 लाख का जुर्माना।
दोषी संस्थान के डायरेक्टर, मैनेजमेंट या इंचार्ज के दोषी मिलने पर उनके लिए भी 3 से 10 साल की सजा, 1 करोड़ का जुर्माना।
संस्थान की मिली भगत साबित होने पर आरोपी संस्थान से परीक्षा का पूरा खर्च वसूला जाएगा। ऐसे संस्थान
अपराध में शामिल लोगों को 5 से 10 साल की सजा और 1 करोड़ तक का जुर्माना।
विधेयक की आवश्यकता क्यों -
• हाल के वर्षों में देश भर में भर्ती परीक्षाओं में प्रश्न पत्र लीक होने के मामले बहुत बढ़ गए हैं।
सार्वजनिक परीक्षाओं में कदाचार के कारण परीक्षाओं में देरी होती है और उनका रद्दीकरण होता है।
इससे लाखों युवाओं के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
वर्तमान में अनुचित तरीकों या किए गए अपराधों से निपटने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
यह जरूरी है कि परीक्षा प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाने वाले तत्वों की पहचान की जाए।
एक केंद्रीय कानून द्वारा उनसे प्रभावी ढंग से निपटा जाए।
विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षा प्रणालियों में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाना है।
• युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदार प्रयासों का उचित प्रतिफल दिया जाएगा और उनका भविष्य सुरक्षित रखा जाएगा।
• इस विधेयक का उद्देश्य विभिन्न अनुचित तरीकों में लिप्त व्यक्तियों, संगठित समूहों या संस्थानों को प्रभावी ढंग से और कानूनी रूप से रोकना है।
• ये व्यक्ति, संगठित समूह या संस्थान मौद्रिक या गलत लाभ के लिए सार्वजनिक परीक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
• विधेयक में उम्मीदवारों के ऊपर कार्रवाई करने का प्रावधान नहीं है।
• उम्मीदवारों का मामला संबंधित सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण के मौजूदा प्रशासनिक प्रावधानों के तहत आएगा।
• यह विधेयक कानून बनने के बाद राज्यों के लिए एक मॉडल ड्रॉफ्ट के रूप में होगा, जिसे वे अपने विवेक से अपना सकते हैं।
• यह राज्यों को आपराधिक तत्वों को उनकी राज्य स्तरीय सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन में बाधा डालने से रोकने में सहायता करेगा।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "हाल के दिनों में, कई राज्यों को असामाजिक, आपराधिक तत्वों द्वारा अपनाई गई अनुचित प्रथाओं और साधनों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण अपनी सार्वजनिक परीक्षाओं के परिणाम रद्द करने पड़े या घोषित करने में असमर्थ रहे हैं। यदि इन अनुचित प्रथाओं को प्रभावी ढंग से अंकुश और रोक नहीं लगाई गई तो इस देश के लाखों महत्वाकांक्षी युवाओं के भविष्य और करियर को खतरे में डालना जारी रहेगा। कई मामलों में, यह देखा गया है कि उनमे संगठित समूह और माफिया तत्व शामिल हैं। वे सॉल्वर गिरोह, परीक्षार्थी के स्थान पर दूसरे व्यक्ति से परीक्षा दिलवाने (प्रतिरूपण- इम्पर्सोनाइ) जेशन जैसे तरीकों का उपयोग करते हैं और पेपर लीक करवाने में लिप्त होते हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक का उद्देश्य मुख्य रूप से इस तरह के जघन्य (नेफेरियस) तत्वों को रोकना है।"
उन्होंने कहा कि वर्तमान में व्यक्तियों, संगठित समूहों, या किसी अन्य एजेंसी/संगठन द्वारा अपनाए गए अनुचित तरीकों या किए गए अपराधों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई विशिष्ट ठोस कानून नहीं है यह स्थिति केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
उन्होंने कहा कि "इसलिए, यह आवश्यक है कि परीक्षा प्रणाली के भीतर और बाहर दोनों ही तरह के तत्व, जो इन कमजोरियों का फायदा उठाते हैं, की पहचान की जाए और उनसे एक व्यापक केंद्रीय कानून के माध्यम से प्रभावी ढंग से निपटा जाए। ऐसे आपराधिक तत्वों को इन परीक्षाओं में बैठने वाले वास्तविक और ईमानदार युवाओं के जीवन और आशाओं के साथ खेलने से रोकने की आवश्यकता है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, इसका उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षा प्रणालियों में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाने के साथ ही युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदार और वास्तविक प्रयासों को उचित पुरस्कार मिलेगा और उनका भविष्य सुरक्षित है।
उन्होंने कहा, "इस विधेयक का उद्देश्य उन व्यक्तियों, संगठित समूहों या संस्थानों को प्रभावी ढंग से और कानूनी रूप से रोकना है जो विभिन्न अनुचित तरीकों में लिप्त हैं और मौद्रिक या गलत लाभ के लिए सार्वजनिक परीक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।"
हालाँकि, डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि विधेयक परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों को दंडात्मक प्रावधानों से बचाता है और वे परीक्षा संचालन प्राधिकरण की मौजूदा अनुचित साधन नीति के प्रावधानों के अंतर्गत ही शासित होंगे।
उन्होंने कहा कि "उम्मीदवार विधेयक के दायरे में कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे और संबंधित सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण के मौजूदा प्रशासनिक प्रावधानों के अंतर्गत ही आते रहेंगे।"
केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा में बिल पेश करते हुए कहा- पब्लिक एग्जामिनेशन बिल में क्वेश्चन और आंसर सीट के लीक होने, डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से कैंडिडेट का सहयोग करने जैसे अपराध शामिल किए गए हैं।
उन्होंने कहा, 'अभी केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों के पास परीक्षाओं में पेपर लीक या नकल जैसे अपराधों से निपटने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है। इसलिए यह जरूरी है कि परीक्षा प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाने वालों की पहचान की जाए और उनसे सख्ती से निपटा जाए।'
इसके अलावा चीटिंग और गलत तरीके से पैसे कमाने के लिए फेक वेबसाइट बनाने, फर्जी एग्जाम्स कराने के लिए नकली एडमिट कार्ड या ऑफर लेटर जारी करने जैसे गैर-कानूनी काम को भी इस बिल में शामिल किया गया है।
इन राज्यों में पेपर लीक पर बने कानून
राजस्थान- पेपर लीक और नकल कराने वालों को उम्रकैद की सजा।
गुजरात- दोषियों को 3 से 10 साल तक की सजा और 1 लाख से 1 करोड़ तक का जुर्माना।
पेपर खरीदने वाले को भी 2 साल से 10 साल तक की सजा।
उत्तराखंड- गैर जमानती क्राइम, दोषी को 10 साल से उम्रकैद तक की सजा, 10 लाख से 10 करोड़ तक का जुर्माना।
हरियाणा- 7 से 10 साल जेल, 10 लाख तक का जुर्माना, दोषी की प्रॉपर्टी नीलाम करके नुकसान की भरपाई का प्रावधान।
पेपर लीक में कहां कितनी सजा?
राजस्थानः उम्रकैद (जल्द ही) उत्तराखंडः उम्रकैद
गुजरात: 10 साल जेल हरियाणाः 10 साल जेल उत्तर प्रदेशः दोषी पर लगता है NSA बिहारः IT एक्ट के साथ सख्त धाराओं में मुकदमा
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