संसद पर आतंकी हमले की 22वीं बरसी पर आज लोकसभा में दोपहर करीब एक बजे यह घटना हुई उस वक्त अफरातफरी मच गई, जब विजिटर्स गैलरी से 2 युवक अचानक नीचे कूद गए। उस समय लोकसभा में बीजेपी सांसद खगेन मुर्मू अपनी बात रख रहे थे। युवक सदन की बेंच पर कूदते हुए आगे बढ़ने लगे। इसी बीच उन्होंने जूते से निकालकर कुछ स्प्रे किया, जिससे सदन में पीला धुआं फैलने लगा।
पूरे सदन में भगदड़ मच गई। इसी दौरान कुछ सांसदों ने घेरकर युवकों को पकड़ लिया। कांग्रेस सांसद गुरजीत सिंह औजला ने बताया कि मैंने उसे सबसे पहले पकड़ा। कुछ लोगों ने दोनों युवकों की पिटाई भी की। इसके बाद उन्हें सुरक्षाकर्मियों को सौंप दिया। यह सब देख स्पीकर ने सदन की कार्यवाही को दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।
किस तरह का बम या धुआं फैलाने वाला उपकरण?
आम तौर पर इस तरह के हथियार स्मोक ग्रेनेड की के रूप में इस्तेमाल होते हैं. कई फिल्मों में देखा जाता है कि आतंकियों को पकड़ने से पहले स्मोक बम या ग्रेनेड फेंका जाता है जो कि एक पतले कैन की तरह होता है और उससे भूरे या पीले रंग का धुंआ निकलने लगता है.
क्या होते हैं स्मोक ग्रेनेड
आमतौर पर स्मोक ग्रेनेड को संकेतों के लिए सेना के लोग इस्तेमाल करते हैं. जब हवाई जहाज और हेलिकॉप्टर लैंडिंग जोन में संकेतों के इस्तेमाल करने के करते हैं क्योंकि उस समय तेज आवाज के कारण कुछ सुनाई नहीं दे सकता है. इनके काम करने का तरीका ग्रेनेड की तरह होता है जिसमें पिन की जगह बाहरी फ्यूज काम करता है.
किस तरह का कैमिकल होता है
इसमें पीला रंग छोड़ने के लिए खास प्रकार के स्मोक ग्रेनेड का उपयोग होता है जिसमें व्हाइट फॉस्फोरस होता है यह पायरोफोरिक एजेंट होता है जो कि तेजी से बादल के जैसा धुआं बनकर फैलता है. इसमें सफेद फॉस्फोरस पीले रंग का धुधां छोड़ता है जिसमें सफेद रंग का 'भी धुआं शामिल होता है. यह धुआं एक मिनट के लिए फैलता है.
ऐसे धुएं का मुख्य उपयोग लोगों को सामने के दृश्य को छिपाने और विमानों और हेलीकॉप्टरों के लिए संकेतों के लिए किया जाता है. लेकिन इस तरह के धुआं छोड़ने वाले कैन कई रंगों में आते हैं. इनका उपयोग उत्सव, कार्यक्रमों आदि में भी होता है. और इसी वजह से ये आम लोगों तक की पहुंच में आसान हो जाते हैं. वैसे तो हथियार वाले केन अलग ही तरह के होते हैं, लेकिन सामान्य रूप से उत्सवों में उपयोग में आने वाले कैन अलग ही होते हैं और हथियारों की श्रेणी में नहीं आते हैं. कई बार तो मौदानों में भीड़ भरी दर्शक दीर्घा में भी लोग इसका उपयोग करते हैं क्योंकि इसे किसी तरह की हानि नहीं होती. ये केवल ध्यान खींचने के लिए इस्तेमाल होते हैं.
कुल 6 लोग थे, दो सदन के अंदर और दो बाहरमामले में 6 लोग बताए जा रहे हैं। जो दो लोग कार्यवाही के दौरान घुसे, उनमें से एक का नाम सागर शर्मा (लखनऊ) और दूसरे का नाम डी मनोरंजन (मैसुरु) है। दोनों सांसद विजिटर पास पर सदन में आए थे। वहीं, सदन के बाहर एक महिला और पुरुष ने पीले रंग का धुआं छोड़ा। इनका नाम अमोल शिंदे (लातूर, महाराष्ट्र) और नीलम (हिसार) है। इनके पास से कोई फोन या बैग बरामद नहीं हुआ। बाहर से गिरफ्तार हुए दोनों लोगों का दावा है कि ये खुद से संसद पहुंचे और उनका किसी संगठन से ताल्लुक नहीं है।
पांचवें व्यक्ति का नाम ललित झा बताया जा रहा है, जो गरुग्राम में रहता था। छठे व्यक्ति का नाम सामने नहीं आया हैं। ये दोनों फिलहाल फरार हैं। पुलिस ने बताया कि सभी 6 लोग ऑनलाइन मिले थे। ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे ये अंदाजा लगे कि इनका संबंध किसी आतंकी संगठन से था। नीलम ने संसद के बाहर नारेबाजी की। कहा, 'तानाशाही नहीं चलेगी। संविधान बचाओ। मणिपुर को इंसाफ दिलाओ। महिलाओं पर अत्याचार नहीं चलेगा। भारत माता की जय। जय भीम, जय भारत।'
एक घंटे बाद कार्यवाही फिर शुरू हुई
यह घटना दोपहर एक बजे की है। इसके बाद दोपहर 2 बजे सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई। आते ही लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा- अभी हुई घटना सबकी चिंता का विषय है। इसकी जांच जारी है। दिल्ली पुलिस को भी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। शुरुआती जांच में पता चला है कि वह साधारण धुआं था। डिटेल जांच के नतीजे आने पर सबको इससे अवगत कराया जाएगा।
इस मामले पर DMK सांसद टीआर बालू ने सवाल पूछना चाहा, तो स्पीकर ने कहा कि दोनों लोग पकड़ लिए गए हैं। उनके पास मिले सामान को जब्त कर लिया गया है। जो दो लोग सदन के बाहर थे, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया है। इसके बाद कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि 2001 में संसद पर हमला हुआ था। आज फिर इसी दिन हमला हुआ है। क्या इससे साबित होता है कि सुरक्षा में चूक हुई है।
पन्नू ने दी थी संसद पर हमले की धमकी
खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने संसद पर हमले की धमकी दी थी। इसके बाद से ही दिल्ली पुलिस अलर्ट पर थी। अमेरिका में रहने वाले पन्नू ने वीडियो जारी करके कहा था- हम संसद पर हमले की बरसी वाले दिन यानी 13 दिसंबर या इससे पहले संसद की नींव हिला देंगे। पन्नू ने संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू के साथ एक पोस्टर जारी किया था।पन्नू का वीडियो सामने आने के बाद दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने कहा था- किसी को भी कानून-व्यवस्था बिगाड़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी। जब संसद चलती है, तो हम हाई अलर्ट पर रहते हैं ताकि कोई भी किसी तरह की गड़बड़ी न फैला सके।
संसद में दर्शकों को एंट्री कैसे मिलती है?
• संसद की कार्यवाही देखने के लिए संसद का एंट्री पास बनवाना होता है। इसके लिए संसद सचिवालय में आवेदन करना होता है। इस आवेदन को किसी एक सांसद से वेरिफाई कराना होता है।
• लोकसभा में 15 नवंबर 2019 को जारी संसदीय और अन्य मामलों संबंधी जानकारी के दस्तावेज के मुताबिक सांसदों को ये बताना होता है कि वे उन लोगों को व्यक्तिगत रूप से अच्छी तरह जानते हैं, जिनके लिए वो विजिटर्स पास का आवेदन कर रहे हैं।
• नियम के मुताबिक उन्हें आवदेन पत्र में लिखना होता है कि अमुक दर्शक मेरा संबंधी या निजी मित्र है, जिसे मैं व्यक्तिगत रूप से जानता/जानती हूं और उसकी उनकी पूरी जिम्मेदारी लेता/लेती हूं।
• आवदेन पत्र में दर्शक का पूरा नाम और जानकारी स्पष्ट अक्षरों में लिखी जाती है। जानकारी में कमी या गड़बड़ी होने पर विजिटर्स पास जारी नहीं किए जाते हैं। आवेदन पत्र में दर्शक का पता और संपर्क नंबर सहित सम्पूर्ण जानकारी मांगी जाती है, जिसका बाद में पुलिस वेरिफिकेशन होता है।
• जनरल विजिटर्स पास के लिए एप्लिकेशन विजिट की तारीख से एक दिन पहले हर हाल में पास के निर्गम प्रकोष्ठ में देना होता है। इसके बाद पास जारी हो जाते हैं। ये पास एक नियत समय के लिए इश्यू किए जाते हैं। वक्त परा होने के बाद संसद के अंदर रुकना या जाना मना होता है।
संसद में एंट्री के लिए सिक्योरिटी प्रोटोकॉल क्या है?
संसद की सुरक्षा संभालने वाली पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस के 2010 में जारी मैनुअल के मुताबिक...
• सबसे पहली लेयर में संसद के मेन गेट पर चेकिंग होती है, जहां आपके फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक और मैटेलिक उपकरणों को जमा कर लिया जाता है। ये आमतौर पर दिल्ली पुलिस के जिम्मे होता है।
• पब्लिक गैलरी की चेकिंग पोस्ट पर संसद सुरक्षा के कर्मचारी डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर हैंड हेल्ड मेटल डिटेक्टर से जांच करते हैं। महिला की जांच महिला सुरक्षाकर्मी और पुरुषों की जांच पुरुष सुरक्षाकर्मी करते हैं।
• जो एंट्री पास मिलता है। उसे अपनी लिस्ट से क्रॉस चेक करते हैं। इसमें नाम, परिचय पत्र और फोटो का मिलान किया जाता है।
• अंदर जाने से पहले दर्शकों को सारे नियम बताए जाते हैं कि उन्हें क्या करना है क्या नहीं। इसमें नारे लगाना, पर्च या कोई अन्य आपत्तिजनक वस्तु फेंकने का प्रयास करना और कूदना या प्रयास करना प्रतिबंधित है।
• दर्शक दीर्घा में बैठने के दौरान भी आपके आस-पास गाइड मौजूद होते हैं। बातचीत, शोर या किसी भी तरह की हलचल देखते ही वो आपको वहीं रोक देते हैं। अव्यवस्था की शंका होने पर आपको दर्शक दीर्घा से बाहर निकाल दिया जाता है।
सुबह 11 बजकर 28 मिनट, पर हंगामे की वजह से संसद की कार्यवाही स्थगित हुई। 11 बजकर 29 मिनट पर संसद भवन के गेट नंबर 11 पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति कृष्णकांत के सुरक्षाकर्मी उनके बाहर आने का इंतजार कर रहे थे, ठीक उसी वक्त एक सफेद एंबेस्डर कार तेजी से उपराष्ट्रपति के काफिले की तरफ आती दिखाई दी। अमूमन संसद में आने वाली गाड़ियों की रफ्तार से इस गाड़ी की गति बहुत तेज थी।
इस गाड़ी के पीछे लोकसभा परिसर के रखवाले सुरक्षाकर्मी जगदीश यादव पीछे भागते नजर आए, वह गाड़ी को चेकिंग के लिए रुकने का इशारा कर रहे थे।
उपराष्ट्रपति का इंतजार कर रहे सुरक्षाकर्मी जगदीश यादव को यूं बेतहाशा भागते देख चौंके और उन्होंने भी गाड़ी को रोकने की कोशिश की। इसमें एएसआई जीत राम, एएसआई नानक चंद और एएसआई श्याम सिंह भी एंबेस्डर की ओर भागे। सुरक्षाकर्मियों को तेजी से अपनी ओर आता देख एंबेस्डर कार का ड्राइवर अपनी गाड़ी को गेट नंबर एक की तरफ मोड़ देता है। गेट नंबर एक और 11 के पास ही उपराष्ट्रपति की कार खड़ी थी। गाड़ी की गति इतनी तेज थी और मोड़ आने की वजह से ड्राइवर नियंत्रण खो देता है और गाड़ी सीधे उपराष्ट्रपति की कार से टकरा जाती है। अब तक संसद परिसर में किसी अनहोनी की खबर फैल चुकी थी।
गाड़ी के पीछे दौड़ रहे सुरक्षाकर्मी अभी उस तक पहुंच भी नहीं पाए थे कि एंबेस्डर के चारों दरवाजे एक साथ खुले और गाड़ी में बैठे पांच आतंकी पलक झपकते ही बाहर निकले और चारों तरफ अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर देते हैं। पांचों के हाथों में AK-47 थी। पांचों की पीठ और कंधे पर बैग थे। आतंकवादियों के पहले हमले का शिकार बने वे चार सुरक्षाकर्मी, जो एंबेस्डर कार को रोकने की कोशिश कर रहे थे।
आतंकवादी गोलियां और ग्रेनेड बरसा रहे थे परिसर के अंदर और बाहर अफरा-तफरी और दहशत का माहौल था हर कोई बचने के लिए कोना तलाश रहा था। गेट नंबर 11 की तरफ से अब भी गोलियों की आवाज सबसे ज्यादा आ रही थी। पांचों आतंकवादी अब भी एंबेस्डर कार के ही आसपास से गोलियां और ग्रेनेड बरसा रहे थे। आतंकवादियों को गेट नंबर 11 की तरफ जमा देख संसद भवन के सुरक्षाकर्मी दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों के साथ गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ते हैं। दोनों तरफ से गोलीबारी हो रही थी
सभी वरिष्ठ मंत्रियों को महफूज जगहों पर पहुंचाया गया
सुरक्षाकर्मियों को डर था कि कहीं आतंकी भवन के अंदर न पहुंच जाएं। इसलिए सबसे पहले उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज समेत सभी वरिष्ठ मंत्रियों को फौरन सदन के अंदर ही महफूज जगहों पर पहुंचाया गया। भवन के अंदर आने-जाने वाले सभी दरवाजे बंद कर दिए गए। सुरक्षाकर्मी मुस्तैदी से अपनी-अपनी पोजीशन बना कर ग्रेनेड और गोलियों के बीच पूरा लोहा लेने में जुट जाते हैं कि तभी पांचों आतंकी अब अपनी पोजीशन बदलने लगते हैं। पांच में से एक आतंकी गोलियां चलाता हुआ गेट नंबर एक की तरफ जाता है जबकि बचे हुए चारों गेट नंबर 12 की तरफ बढ़ने की कोशिश करने लगते हैं।
आतंकवादियों की कोशिश सदन के दरवाजे तक पहुंचने की थी ताकि वो सदन के अंदर घुस कर कुछ नेताओं को नुकसान पहुंचा सकें। मगर सुरक्षाकर्मियों ने पहले ही तमाम दरवाजों के इर्द-गिर्द अपनी पोजीशन बना ली थी।
आतंकवादी ने रिमोट दबा कर खुद को उड़ा लिया
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि आतंकी गोलियां बरसाते हुए इधर-उधर भाग रहे थे लेकिन उन्हें नहीं पता था कि सदन के अंदर दाखिल होने के लिए दरवाजे कहां और किस तरफ हैं? इसी अफरा-तफरी के बीच एक आतंकवादी जो गेट नंबर । की तरफ बढ़ा था वहीं से गोलियां बरसाता हुआ सदन के अंदर जाने के लिए संसद भवन के गलियारे से होते हुए एक दरवाजे की तरफ बढ़ता है। लेकिन तभी मुस्तैद सुरक्षाकर्मी उसे गोलियां से छलनी कर देती है। गोली लगते ही गेट नंबर एक के पास गलियारे के दरवाजे से कुछ दूरी पर वो गिर जाता है। यह आतंकवादी गिर चुका था। पर अभी वो जिंदा था। सुरक्षाकर्मी उसे पूरी तरह से निशाने पर लेने के बावजूद उसके करीब जाने से अभी भी बच रहे थे। क्योंकि डर ये था कि कहीं वो खुद को उड़ा न ले और सुरक्षाकर्मियों का ये डर गलत भी नहीं था, क्योंकि जमीन पर गिरने के कुछ ही पल बाद जब उस आतंकवादी को लगा कि अब वो घिर चुका है तो उसने फौरन रिमोट दबा कर खुद को उड़ा लिया, उसने अपने शरीर पर बम बांध रखा था। यह एक फिदायीन यानी आत्मघाती हमला था।
फिदायीन हमले को देखते हुए सुरक्षाकर्मी सूझबूझ से काम ले रहे थे।
चार आतंकी अब भी जिंदा थे। न सिर्फ जिंदा थे बल्कि लगातार भाग-भाग कर अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। आतंकी के कंधे और हाथों में मौजूद बैग बता रहे थे कि उनके पास गोली, बम और ग्रेनेड का पूरा जखीरा था।
चारों आतंकी परिसर में इधर-उधर भागते हुए छुपने का ठिकाना ढूंढ रहे थे। दूसरी तरफ सुरक्षाकर्मी अब चारों तरफ से आतंकवादियों को घेरना शुरू कर चुके थे। गोलीबारी अब भी जारी थी। और फिर इसी दौरान गेट नंबर पांच के पास एक और आतंकवादी सुरक्षाकर्मी की गोलियों से ढेर हो जाता है।
पूरे ऑपरेशन में 40 मिनट का समय लगा
तीन आतंकी अभी भी जिंदा थे। तीनों अच्छी तरह जानते थे कि वो संसद भवन से जिंदा बच कर नहीं निकल पाएंगे शायद वह इसीलिए पूरी तैयारी से आए थे उनके शरीर पर बम लगा था जो रिमोट का एक बटन दबाते ही उन्हें और उनके आसपास कई मीटर तक को नेस्तनाबूद करने के लिए काफी था। लिहाजा अब वह सदन के अंदर जाने की एक और आखिरी कोशिश करने में जुटे हुए थे और गोलियां बरसाते हुए धीरे-धीरे गेट नंबर 9 की तरफ बढ़ने लगे। मगर मुस्तैद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें गेट नंबर नौ के पास ही घेर लिया।
परिसर में मौजूद पेड़ पौधों का सहारा लेते हुए आतंकी गेट नंबर नौ तक पहुंच चुके थे। सुरक्षाकर्मियों ने अब उन्हें गेट नंबर 9 के पास पूरी तरह से घेर लिया। आतंकी सुरक्षाकर्मियों पर हथगोले फेंक रहे थे, लेकिन मुस्तैद सुरक्षाकर्मियों ने तीनों आतंकी को ढेर कर दिया। पूरे
ऑपरेशन में 40 मिनट का समय लगा।
15 दिसंबर, 2001: दिल्ली पुलिस ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के कथित सदस्य अफजल गुरु को कथित तौर पर आतंकवादियों को साजिश रचने और शरण देने के आरोप में जम्मू-कश्मीर से उठाया। बाद में उन्हें दोषी पाया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज के एसएआर गिलानी को पूछताछ के लिए उठाया गया और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। दो अन्य - अफसान गुरु और उनके पति शौकत हुसैन गुरु को बाद में उठाया गया।
29 दिसंबर, 2001: अफ़ज़ल गुरु को 10 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया। 4 जून 2002: चार लोगों अफजल गुरु, गिलानी, शौकत हुसैन गुरु, अफसान गुरु और गिलानी के खिलाफ आरोप तय किए गए। 18 दिसंबर, 2002: एक ट्रायल कोर्ट ने अफजल गुरु, एसएआर गिलानी और शौकत हुसैन गुरु को मौत की सजा सुनाई, जबकि अफसान गुरु को बरी कर दिया गया। 30 अगस्त, 2003: हमले का मुख्य आरोपी जैश-ए-मोहम्मद नेता गाजी बाबा श्रीनगर में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के साथ मुठभेड़ में मारा गया। 10 घंटे तक चली मुठभेड़ में उनके साथ तीन और आतंकी भी मारे गए। 29 अक्टूबर, 2003: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अफ़ज़ल गुरु की मौत की सज़ा बरकरार रखी। कोर्ट ने इस मामले में एसएआर गिलानी को भी बरी कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु की मौत की सजा को बरकरार रखा लेकिन शौकत हुसैन गुरु की मौत की सजा को 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।
इस हमले में 9 लोग शहीद हुए थे। इनमें संसद सुरक्षा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी, दिल्ली पुलिस के पांच सुरक्षाकर्मी नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेन्द्र सिंह और घनश्याम, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की महिला कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी और सीपीडब्ल्यूडी के कर्मचारी देशराज थे।हमले में 16 जवान घायल भी हुए थे।
शहीदों में जगदीश प्रसाद यादव, कमलेश कुमारी और मातबर सिंह नेगी को अशोक चक्र, नानक चंद, ओमप्रकाश, घनश्याम, रामपाल और बिजेन्द्र सिंह को कीर्ति चक्र दिया गया था। संतोष कुमार, वाई बी थापा, श्यामबीर सिंह और सुखवेंदर सिंह को शौर्य चक्र दिया गया था।
• 3 अक्टूबर, 2006: अफ़ज़ल गुरु की पत्नी तबस्सुम गुरु ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के पास दया याचिका दायर की।
• 12 जनवरी, 2007: सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु की मौत की सजा की समीक्षा की मांग वाली याचिका खारिज कर दी और कहा, "इसमें कोई दम नहीं है"।
• 19 मई, 2010: दिल्ली सरकार ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका खारिज कर दी; सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उन्हें दी गई मृत्युदंड की सज़ा का समर्थन किया।
• 30 दिसंबर, 2010: शौकत हुसैन गुरु को दिल्ली के तिहाड़ जेल से रिहा किया गया
• 10 दिसंबर 2012: गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि वह 22 दिसंबर को संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने के बाद अफजल गुरु की फाइल की जांच करेंगे।
• 3 फरवरी, 2013: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल गुरु की दया याचिका बात खारिज कर दिए
• 9 फरवरी, 2013: अफजल गुरु को कड़ी सुरक्षा के बीच सुबह 8 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दी गई।
Published by Mukesh Kumar
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