इजराइल हमास जंग का आज 8 दिन है। इस बीच इजराइल ने सीरिया में हमास के समर्थक ईरान के ठिकानों पर हमला किया है। ये हमले दमिश्क में एयरपोर्ट के करीब हुए हैं। वहीं इजराइली मंत्री ने कहा है कि गाजा जब तक बंधक बनाए गए इजराइलियों को छोड़ नहीं देता, तब तक उसे बिजली-पानी नहीं मिलेगा।
दरअसल, 9 अक्टूबर को गाजा बॉर्डर पर कब्जे के बाद इजराइल ने गाजा तक होने वाली बिजली सप्लाई रोक दी थी। जिसके बाद 11 अक्टूबर को पूरे गाजा में बिजली सप्लाई ठप हो गई थी। 5 में से 3 वाटर प्लांट्स ने भी काम करना बंद कर दिया है
अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, गाजा में फिलिस्तीनी रिफ्यूजी के लिए काम कर रही UN रिलीफ एंड वर्क एजेंसी के पास बहुत कम मात्रा में खाना और पानी बचा है। इस मात्रा से सिर्फ 12 दिन का काम चल सकता है। इसके बाद 1 लाख 80 हजार लोगों के भूखे रहने की नौबत आ जाएगी।एजेंसी की डिप्टी डायरेक्टर जेनेफर ऑस्टिन ने कहा- सड़कों पर मलबा है, रास्ते बंद हो गए हैं। कम्युनिकेशन लाइन कट गई है। लोगों की मदद करने में काफी मुश्किलें हो रही हैं। अक्टूबर से शुरू हुई जंग में अब तक 2,500 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से करीब 1,300 इजराइली हैं। अब तक करीब 1,200 फिलिस्तीनियों ने भी जान गंवाई है।
पृथ्वी को लगातार ऑब्जर्व करने वाली सेंटिनल-2 सैटेलाइट ने ये तस्वीरें ली हैं। इनमें जले हुए घर और तबाह हुई इमारतें दिख रही हैं।
हमास ने सुबह पहले रॉकेट से इजराइल पर हमले शुरू किए। फिर उसके लड़ाकों ने बॉर्डर पार करके इजराइल में घुसपैठ की। लड़ाकों ने इजराइलियों के घर में घुसकर उन पर गोलियां बरसाई
किबुरज नीर ओज: लोगों को घर में : घुसकर मारा 50% आबादी खत्म जिन जगहों पर हमास ने सबसे ज्यादा लोगों को निशाना बनाया उनमें किबुरज नीर ओज भी शामिल है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, किवत्ज नीर ओज में हमले से पहले करीब 350-400 लोग थे। हमले के बाद यहां मुश्किल से 200 लोग बचे हैं।रक्षा मंत्री बोले- अब जंग के सारे नियम खत्म, गाजा को 180 डिग्री बदल देंगे
इधर, दुनियाभर से हजारों इजराइली जंग में शामिल होने के लिए अपने वतन लौट रहे हैं। ग्रीस से लेकर न्यूयॉर्क तक एयरपोर्ट पर इजराइलियों की भीड़ है। इजराइली मीडिया के मुताबिक, सेना ने रिजर्व सैनिकों की संख्या 3 लाख 60 हजार कर दी है, इसीलिए इजराइलियों में घर लौटने की होड़ मची है।
इजराइल सरकार ने जंग से जुड़े फैसले लेने के लिए यूनिटी गवर्नमेंट और 3 सदस्यों की वॉर केबिनेट बनाई है। नई सरकार में विपक्षी पार्टी को भी शामिल किया गया है। कैबिनेट में प्रधानमंत्री नेतन्याहू, विपक्षी नेता बेनी गैट्ज और मौजूदा डिफेंस मिनिस्टर बोव गैलेंट रहेंगे। इजराइली रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने कहा- हमने युद्ध के सभी नियम खत्म कर दिए हैं। हमारे सैनिक अब किसी भी चीज के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। उन पर मिलिट्री कोर्ट में कोई केस दर्ज नहीं होगा। हमास गाजा को बदलना चाहता था, हम इसे 180 डिग्री तक बदल डालेंगे। वे इस बात के लिए हमेशा पछताएंगे कि गाजा अब कभी भी पहले जैसा नहीं हो पाएगा।
अरब विदेश मंत्रियों ने इज़राइल से एक कब्जे वाली शक्ति के रूप में अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने और दो-राज्य समाधान पर बातचीत पर लौटने का आग्रह किया है जो फिलिस्तीन के लिए एक व्यवहार्य राज्य प्रदान करता है।बुधवार को काहिरा में अरब लीग की एक आपातकालीन बैठक में, मंत्रियों ने "शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन और इज़राइल के बीच गंभीर बातचीत शुरू करने के महत्व" को रेखांकित किया।
यह कदम दोहरे ट्रैक का हिस्सा है - और मुख्य रूप से सऊदी के नेतृत्व वाली - पहल का उद्देश्य संकट को कम करना है, लेकिन साथ ही इज़राइल को यह स्वीकार करना है कि बातचीत से इनकार करने के कारण हमास के साथ संबंधों में गिरावट आई है।
बिडेन प्रशासन ने निजी तौर पर निराशा व्यक्त की है कि सऊदी अरब - सप्ताहांत में हमास द्वारा किए गए क्रूर हमलों की निंदा करना तो दूर - यह कह रहा है कि यदि फिलिस्तीनियों को वह स्वतंत्र राज्य दिया गया होता जिसकी वे दशकों से मांग कर रहे थे, तो हिंसा नहीं होती।
टू स्टेट थ्योरी क्या है?
टू स्टेट सॉल्यूशन या दो राष्ट्र समाधान का प्रस्ताव सबसे पहले 1937 में आया था. तब ब्रिटिश सरकार में पील कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में ये प्रस्ताव दिया था। इसमें नेगेव रेगिस्तान, वेस्ट और गाजा पट्टी को अरब लोगों को देने का प्रस्ताव रखा गया था. जबकि, गलीली में ज्यादातर समुद्री तट और फिलिस्तीन की उपजाऊ भूमि यहूदियों को देने की बात थी. येरूशलम ब्रिटिश अपने पास ही रखना चाहते थे. इस प्रस्ताव का यहूदियों ने तो समर्थन किया लेकिन अरबों ने खारिज कर दिया।
पील कमीशन एक ब्रिटिश शाही जांच आयोग था जिसने अनिवार्य फ़िलिस्तीन में अशांति के कारणों की जाँच की। अप्रैल 1936 में भड़के महान फिलिस्तीनी विद्रोह के जवाब में ब्रिटिश सरकार द्वारा 1936 में आयोग की नियुक्ति की गई थी। आयोग का नेतृत्व लॉर्ड रॉबर्ट पील ने किया था। पील आयोग ने फिलिस्तीनी अरबों के बीच अशांति के कारणों की जांच की और यहूदी. आयोग ने पाया कि विद्रोह का कारण था:• अरब आज़ादी चाहते हैं
• यहूदियों के प्रभुत्व वाले फ़िलिस्तीन में अरबों को अल्पसंख्यक होने का डर
पील कमीशन ने सिफारिश की कि केवल जाफ़ा और यरूशलेम के बीच का क्षेत्र, फिलिस्तीन का लगभग 8 प्रतिशत, ब्रिटिश शासनादेश और अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण के अधीन रहेगा।
1947 में फिर संयुक्त राष्ट्र ने बंटवारे का प्रस्ताव रखा. इसमें तीन-तरफा विभाजन था. पेरूशलम को अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में ही रखने का प्रस्ताव था. जबकि, यहूदियों और अरबों के लिए अलग-अलग मुल्क बनाने की बात थी. इस बार भी यहूदियों ने इसे मान लिया लेकिन अरब नेताओं ने इसका विरोध किया
1947 के बाद
14 मई 1948 को इजरायल बना बनते ही पहला अरब-इजरायल युद्ध शुरू हो गया. सालभर तक चले युद्ध के बाद सीजफायर का ऐलान हुआ. इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में साल 1967 में टर्निंग प्वॉइंट है. 1967 में छह दिन तक युद्ध चला था. छह दिन की इस जंग में इजरायल ने मिस्र और सीरिया की वायुसेना पर हमला कर दिया था।
इस युद्ध में इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप, गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, येरूशलम और गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया. इस युद्ध से पहले तक गाजा पट्टी पर मिस्र और वेस्ट बैंक पर जॉर्डन का नियंत्रण था. इस युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र में एक रिजॉल्यूशन पास किया गया, जिसमें इजरायल से कब्जे वाले इलाके छोड़ने का ऐलान किया गया.1964 में बनी फिलिस्तीन लिबरेशन
ऑर्गनाइजेशन (PLO) ने टू स्टेट सॉल्यूशन का हमेशा विरोध किया. हालांकि, 1970 के मध्य में पीएलओ ने इसके समर्थन के संकेत दिए. 1976 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में टू स्टेट सॉल्यूशन पर एक और रिजॉल्यूशन आया ये 1967 के पहले की सीमा रेखा के आधार पर था. लेकिन अमेरिका ने वीटो का इस्तेमाल कर इसे गिरा दिया. इस प्रस्ताव ने टू स्टेट सॉल्यूशन का समर्थन किया, साथ ही ये भी कहा कि सीमाओं पर सभी पार्टियों को बातचीत करनी चाहिए,
अब तक क्यों नहीं निकला हल?
1. बॉर्डर: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच अब तक बॉर्डर तय नहीं है. ज्यादातर का मानना है कि
1967 के अरब-इजरायल युद्ध से पहले की रेखा को सीमा माना जाए. हालांकि, इजरायल इसके पक्ष में नहीं है.
2. येरूशलम: दोनों ही येरूशलम को अपनी राजधानी बताते हैं. इजरायल ने तो इसे अपनी आधिकारिक राजधानी भी घोषित कर दिया है, येरूशलम यहूदियों के साथ-साथ ईसाई और मुस्लिमों के लिए भी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का केंद्र है. इतना ही नहीं, येरूशलम में इजरायल ने बुनियादी ढांचा इतना विकसित कर लिया है, जिससे उसकी स्थिति यहां मजबूत हो गई है.
3. शरणार्थी: 1948 में हुए पहले अरब-इजरायल युद्ध के बाद लाखों की संख्या में फिलिस्तीनी यहां से भाग गए थे, अनुमान है कि आज उनकी संख्या 50 लाख के आसपास होगी. अगर सीमाएं तय होती हैं। और फिर से उन्हें यहां बसाया जाता है तो इससे यहूदियों का अनुपात कम हो जाएगा.
इजराइल-हमास जंग के बीच ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से फोन पर बात की। फरवरी में चीन की तरफ से समझौता कराए जाने के बाद ये पहला मौका था, जब दोनों देशों के नेताओं ने बात की। ईरान के स्टेट मीडिया के मुताबिक, वातचीत के दौरान राष्ट्रपति रईसी और सऊदी क्राउन प्रिंस के बीच फिलिस्तीन के खिलाफ वॉर क्राइम रोकने पर सहमति बनी।
मोहम्मद बिन सलमान ने कहा- सऊदी जंग को रुकवाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। हम इसके लिए सभी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय पार्टीज से बात कर रहे हैं। सऊदी अरब ने इस बात पर भी जोर दिया कि जंग में आम नागरिकों को टारगेट नहीं किया जाना चाहिए।
वहीं इस फोन कॉल पर अमेरिका के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- हम हमास के खिलाफ जंग में इजराइल के साथ हैं। इस बीच हम लगातार सऊदी अरब के लीडर्स के संपर्क में हैं।
भारत ने इजराइल पर हमास के हमले को आतंकी हमला बताया है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि फिलिस्तीन को लेकर भारत की पॉलिसी लंबे समय से एक ही रही है। भारत हमेशा से बातचीत से आजाद और संप्रभु फिलिस्तीन बनाने की वकालत करता रहा है। अभी भारत का यही स्टैंड है।
ऑपरेशन अजय |
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